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आनंद

हृदय में “आनंद” हो तो वसंत कभी भी आ सकता है ।

“आनंद” के पल में 12 मास वसंत होगा ।

 

  • “आनंद” के पल खोजें , दुख के नहीं । “आनंद” फैलाव है , दुख सिकुडा़व है । आपने अनुभव भी किया होगा, जब आप दुखी होते हैं तो बिल्कुल सिकुड़ जाते हैं । जब आप दुखी होते हैं , तो खिड़की दरवाजे बंद करके एक कोने में पड़े रहते हैं।

  • छोटी-छोटी बातों का ‘उत्सव’ मनाना सीखें। आप जीवित है , यह क्या कम है ? आज सूरज निकला , आज फिर फूल खिले , यह उत्सव के लिए काफी नहीं है ? कभी धूल-धवांस से भरे ट्रैफिक में अनायास ऊपर देखें , आसमान में डूबते सूरज के ऐसे रंग बिखरे रहते हैं कि सांस ठहर जाती है ।
  • कभी सड़क पर कोने में कहीं किसी पेड़ पर कोई फूल मुस्कुराता रहता है जिसे कोई नहीं देखता । उसकी मुस्कान अपने भीतर लें ।
  • जब भी मौका मिले ‘डांस’ को अपनी दिनचर्या में शामिल करें । ‘डांस’ एक थेरेपी है , एक औषधि है , जो पूरे शरीर में नया जीवन संचारित करती है ।
  • जितना ज्यादा ‘हंस’ सकें , “हंसे” । बहुत गंभीरता से जीने की जरूरत नहीं है । जीवन एक मजाक है , एक खेल है। इसे जितना सहजता से खेलें ।आपका जीवन हल्का और रसीला होगा ।
  • थोड़ा अपने साथ भी जिएं । हमेशा लोगों की भीड़ से घिरे रहना भी अनेकों बार उदासी का सबब बनता है । चाहे वे घर के ही लोग या आपके बेस्ट फ्रेंड ही क्यों न हो , हमेशा साथ रहने की जरूरत नहीं है । हर एक को अकेला होने का हक है । अपनी भीतर डुबकी लगाएं और आप तरोताजा होकर वापिस आएंगे ।

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